ख़ुद का ख़ुद से हो गया था सामना
और उसने फ़ोड डाला आईना
मार कर सच को की उसने ख़ुदकुशी
फिर बचा बस खुद से ख़ुद का भागना
गुफ्तगू होती रही चुपचाप बस
साथ तारों के हुआ था जागना
छु रहा था कुछ हवाओं सा मुझे
नाम उसका क्या कहा था साजना ?
बस सितारों से भरा था आसमाँ
रातभर जायज्ञ था मेरा जागना
-कु. कवि रावल